शनिवार, 30 अप्रैल 2011

एक अजब सी दुनिया देखा करता था ....

ग़ज़ल
आलम खुरशीद

एक अजब सी दुनिया देखा करता था
दिन में भी मैं सपना देखा करता था

एक ख्यालाबाद था मेरे दिल में भी
खुद को मैं शहज़ादा देखा करता था

सब्ज़ पारी का उड़नखटोला हर लम्हे
अपनी जानिब आता देखा करता था

उड़ जाता था रूप बदल कर चिड़ियों के
जंगल , सेहरा , दरिया देखा करता था

हीरे जैसा लगता था इक इक कंकर
हर मिटटी में सोना देखा करता था

कोई नहीं था प्यासा रेगिस्तानों में
हर सेहरा में दरिया में देखा करता था

हर जानिब हरियाली थी,खुशहाली थी
हर मिटटी में सोना देखा करता था

बचपन के दिन कितने अच्छे होते हैं
सब कुछ ही मैं अच्छा देखा करता था

आँख खुली तो सारे मंजर गायब हैं
बंद आँखों से क्या क्या देखा करता था

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