सोमवार, 13 जून 2011

देख रहा है दरिया भी हैरानी से

देख रहा है दरिया भी हैरानी से
मैं ने कैसे पार किया आसानी से

नदी किनारे पहरों बैठा रहता हूँ
क्या रिश्ता है मेरा बहते पानी से

अब जंगल में चैन से सोया करता हूँ
डर लगता था बचपन में वीरानी से

हर कमरे से धुप,हवा की यारी थी
घर का नक्शा बिगड़ा है नादानी से

दिल पागल है रोज़ पशेमाँ होता है
फिर भी बाज़ नहीं आता मनमानी से