हर घर में कोई तहखाना होता है
तहखाने में इक अफ़साना होता है
किसी पुरानी अलमारी के खानों में
यादों का अनमोल खज़ाना होता है
रात गए अक्सर दिल के वीराने में
इक साये का आना-जाना होता है
बढ़ती जाती है बेचैनी नाख़ून की
जैसे जैसे ज़ख्म पुराना होता है
दिल रोता है, चेहरा हँसता रहता है
कैसा कैसा फ़र्ज़ निभाना होता है
ज़िंदा रहने की खातिर इन आँखों में
कोई न कोई ख़्वाब सजाना होता है
जंगल से बस्ती में आकर भेद खुला
दिल के अंदर ही वीराना होता है
क्यूँ लोगों को याद नहीं रहता 'आलम'
इस दुनिया से वापस जाना होता है
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तहखाने में इक अफ़साना होता है
किसी पुरानी अलमारी के खानों में
यादों का अनमोल खज़ाना होता है
रात गए अक्सर दिल के वीराने में
इक साये का आना-जाना होता है
बढ़ती जाती है बेचैनी नाख़ून की
जैसे जैसे ज़ख्म पुराना होता है
दिल रोता है, चेहरा हँसता रहता है
कैसा कैसा फ़र्ज़ निभाना होता है
ज़िंदा रहने की खातिर इन आँखों में
कोई न कोई ख़्वाब सजाना होता है
जंगल से बस्ती में आकर भेद खुला
दिल के अंदर ही वीराना होता है
क्यूँ लोगों को याद नहीं रहता 'आलम'
इस दुनिया से वापस जाना होता है
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