रविवार, 22 मई 2011

हर घर में कोई तहखाना होता है

हर घर में कोई तहखाना होता है
तहखाने में इक अफ़साना होता है

किसी पुरानी अलमारी के खानों में
यादों का अनमोल खज़ाना होता है

रात गए अक्सर दिल के वीराने में
इक साये का आना-जाना होता है

बढ़ती जाती है बेचैनी नाख़ून की
जैसे जैसे ज़ख्म पुराना होता है

दिल रोता है, चेहरा हँसता रहता है
कैसा कैसा फ़र्ज़ निभाना होता है

ज़िंदा रहने की खातिर इन आँखों में
कोई न कोई ख़्वाब सजाना होता है

जंगल से बस्ती में आकर भेद खुला
दिल के अंदर ही वीराना होता है

क्यूँ लोगों को याद नहीं रहता 'आलम'
इस दुनिया से वापस जाना होता है
_______________________